आसान नहीं है माइनस जगदानंद राजनीति
राजद सुप्रीमो जिस उम्र के साथ बीमारी के पड़ाव से गुजर रहे हैं, वहां एकबारगी माइनस जगदानंद कर आगे की राजनीति के बारे में सोचना आसान नहीं है। उसकी वजह भी है। एक तो जगदानंद सिंह बेहद खराब स्थिति में आजमाए हुए मोहरे हैं। लालू प्रसाद की जिंदगी में आई ऐसी तमाम कमजोर समय में भी जगदानंद सिंह की महत्वाकांक्षा नहीं जागी। और जागी भी तो लालू प्रसाद के प्रति समर्पण भरे राजनीति का तकाजा। राजद सुप्रीमो के सामने ऐसी कई घटनाओं की याद ताजा है, जहां जगदानंद सिंह ने पार्टी की चिंता की, न की छोटे-मोटे स्वार्थ भरी राजनीति की। राजद सुप्रीमो की नजर में वो दिन सबसे भरोसे वाला साबित हुआ, जब बेटे के विरुद्ध जाकर अपनी पार्टी के उम्मीदवार की जीत की राह पर चले और सफलता भी पाई।
आज भी लालू प्रसाद संकट की घड़ी से मुक्त नहीं हुए हैं। बीमारी की ज्वाला के साथ-साथ रेलवे की नौकरी और जमीन घोटाले के मामले का पेंच तेजस्वी समेत परिवार के कई सदस्यों के ऊपर मंडरा रहा है। ऐसे खास समय में जब राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा चल रही है कि लालू परिवार पर लगभग जितने नए मामले आए हैं, उसकी जड़ में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नीतीश कुमार या उनके आसपास के लोग रहे हैं।
तो विकल्प क्या है?
महागठबंधन की राजनीत में दो ही थ्योरी सामने दिखती है। एक तो ये कि वे जगदानंद सिंह को माना लें। रूठने वालों को मनाने में लालू प्रसाद का जवाब नहीं। जगदा बाबू ने जब मंत्री पद से 1992 में इस्तीफा दिया था तो लालू प्रसाद ने अपने तरीके से मना लिया था। इस बार भी प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन रहे थे तो लालू प्रसाद के कहने पर ही वे जिम्मेदारी संभालने को तैयार हुए। अब ये रूठने का तीसरा मामला आया है। लालू प्रसाद राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। वे आश्वासन का पहाड़ खड़ा कर, अपने बच्चों (सुधाकर) के भविष्य को संवारने का वादा तेजस्वी यादव के सीएम बनने के साथ पूरा करेंगे।
दूसरा रास्ता नीतीश कुमार के माइंड सेट के साथ होकर गुजरता है। नाम न बताने की शर्त पर राजद के वरीय नेता कहते हैं कि जगदानंद सिंह की जरूरत तब है ना, जब नीतीश कुमार भी राजद के विरुद्ध खड़े हों। ऐसे में जगदानंद सिंह की अहमियत आज के दिन क्या हैं? सच में अगर जगदानंद सिंह अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे तो लालू प्रसाद अब्दुल बारी सिद्दीकी को अध्यक्ष की कुर्सी सौंपने में तनिक भी देर नहीं करेंगे। और ऐसा कर एमवाई समीकरण को मजबूत करेंगे। जगदा बाबू की नाराजगी से अगर राजपूत वोट कुछ छिटकता भी है तो कुर्मी वोट संतुलन बनाने के लिए काफी है। एक सच ये भी है कि अभी तेजस्वी का भविष्य नीतीश कुमार के हाथ में है ना कि जगदानंद सिंह के हाथ में।
क्या आरजेडी में बढ़ेगी नीतीश की दखल?
हालाकि भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि इस प्रकरण से एक बात तो तय हो गया कि राजद संगठनात्मक ढंग से कमजोर हो गया। एक तरफ राजद के वरीय दलित नेता श्याम रजक की नाराजगी जगजाहिर हो गई तो दूसरी तरफ जगदानंद सिंह की। ये दोनों ही स्थिति नीतीश कुमार के लिए मुफीद है कि वो अब राजद के अंदरूनी मामलों में भी दखल अंदाजी करेंगे। ये तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना तो सकता है मगर पार्टी को कमजोर करने की स्थिति के साथ।