UNESCO Tag: एएसआई सम्मेलन में यूनेस्को टैग के लिए स्थलों के अंतरराष्ट्रीय नामांकन पर चर्चा की गई

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों के यूनेस्को टैग के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय नामांकन’ पर चर्चा की गई। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी। अधिकारियों ने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों के बारे में चर्चा अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विशिष्ट उदाहरण है और यूनेस्को टैग के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय नामांकन’ के लिए अर्हता प्राप्त कर सकती है।

यह दो दिवसीय सम्मेलन – ‘जलधिपुरायात्रा: हिंद महासागर के तटीय देशों की पार-सांस्कृतिक सहलग्नता की खोज’- 2014 में कतर के दोहा में आयोजित यूनेस्को की 38वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में भारत के संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई ‘मौसम परियोजना’ की थीम पर आयोजित किया गया था।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस विषय पर और अधिक शोध को बढ़ावा देने और समझ को व्यापक बनाने के उद्देश्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सात से आठ अक्तूबर तक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। एएसआई ने एक बयान में कहा कि सम्मेलन में एक पूर्ण सत्र के बाद छह शैक्षणिक सत्र शामिल थे, जिनमें से हर सत्र भारत की समुद्री बातचीत के एक विशेष पहलू से संबंधित था।

बयान में कहा गया है कि एक सत्र में विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों और संरचनाओं की पहचान और अंतर-देश संबंधों के उदाहरण के विशेष संदर्भ में विश्व धरोहर संपत्तियों से संबंधित मुद्दों पर विचार किया गया। इसका उद्देश्य यूनेस्को की विश्व विरासत प्रमाणन के लिए अंतरराष्ट्रीय नामांकन के लिए अर्हता प्राप्त करना था।

एएसआई ने कहा कि इसके बाद एक अनूठा सत्र हुआ जिसमें विभिन्न हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के प्रतिनिधियों और राजदूतों ने क्षेत्र के अंतर-देशीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं और यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल होने के लिए क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थलों के अंतरराष्ट्रीय नामांकन पर चर्चा की गई। बयान में कहा गया है कि मौसम परियोजना को मानसून हवाओं और अन्य जलवायु कारकों और जिस तरह से इन प्राकृतिक तत्वों ने इतिहास के विभिन्न अवधियों में हिंद महासागर क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच बातचीत को प्रभावित किया उसे समझने के प्रयास में शुरू किया गया था। वर्तमान में, मौसम परियोजना एएसआई द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है।

एएसआई ने कहा कि संस्कृति और संसदीय मामलों के राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल, संस्कृति और विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी, केंद्रीय संस्कृति सचिव गोविंद मोहन और हिंद महासागर क्षेत्र के कई देशों के राजदूतों ने सम्मेलन में भाग लिया। मीनाक्षी लेखी ने अपने संबोधन में अन्य देशों के साथ भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के कई पहलुओं पर “निष्पक्ष शोध” की आवश्यकता पर जोर दिया।

इस अवसर पर भारत की समुद्री विरासत की संक्षिप्त रूपरेखा और भारत की विश्व धरोहर संपत्तियों की एक सूची के साथ मौसम परियोजना के उद्देश्यों और दायरे पर एक विवरणिका (ब्रोशर) जारी किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन मौसम परियोजना से संबंधित मुद्दों पर राजदूतों के साथ चर्चा की गई। जिसमें विशेष रूप से वस्त्र, मसाले और मसालेदार व्यंजन, वास्तुकला और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के अन्य पहलुओं से संबंधित अंतर-देशीय संबंधों पर चर्चा की गई।

बयान में कहा गया है कि भारत के विभिन्न हिस्सों के 20 से अधिक विद्वानों ने शैक्षणिक सत्र में भाग लिया, जिनमें मौसम विज्ञानी, पुरातत्वविद, इतिहासकार और जलवायु परिवर्तन, पानी के भीतर की खोज और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध विशेषज्ञ शामिल थे।

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों के यूनेस्को टैग के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय नामांकन’ पर चर्चा की गई। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी। अधिकारियों ने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों के बारे में चर्चा अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विशिष्ट उदाहरण है और यूनेस्को टैग के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय नामांकन’ के लिए अर्हता प्राप्त कर सकती है।

यह दो दिवसीय सम्मेलन – ‘जलधिपुरायात्रा: हिंद महासागर के तटीय देशों की पार-सांस्कृतिक सहलग्नता की खोज’- 2014 में कतर के दोहा में आयोजित यूनेस्को की 38वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में भारत के संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई ‘मौसम परियोजना’ की थीम पर आयोजित किया गया था।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस विषय पर और अधिक शोध को बढ़ावा देने और समझ को व्यापक बनाने के उद्देश्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सात से आठ अक्तूबर तक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। एएसआई ने एक बयान में कहा कि सम्मेलन में एक पूर्ण सत्र के बाद छह शैक्षणिक सत्र शामिल थे, जिनमें से हर सत्र भारत की समुद्री बातचीत के एक विशेष पहलू से संबंधित था।

बयान में कहा गया है कि एक सत्र में विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों और संरचनाओं की पहचान और अंतर-देश संबंधों के उदाहरण के विशेष संदर्भ में विश्व धरोहर संपत्तियों से संबंधित मुद्दों पर विचार किया गया। इसका उद्देश्य यूनेस्को की विश्व विरासत प्रमाणन के लिए अंतरराष्ट्रीय नामांकन के लिए अर्हता प्राप्त करना था।

एएसआई ने कहा कि इसके बाद एक अनूठा सत्र हुआ जिसमें विभिन्न हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के प्रतिनिधियों और राजदूतों ने क्षेत्र के अंतर-देशीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं और यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल होने के लिए क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थलों के अंतरराष्ट्रीय नामांकन पर चर्चा की गई। बयान में कहा गया है कि मौसम परियोजना को मानसून हवाओं और अन्य जलवायु कारकों और जिस तरह से इन प्राकृतिक तत्वों ने इतिहास के विभिन्न अवधियों में हिंद महासागर क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच बातचीत को प्रभावित किया उसे समझने के प्रयास में शुरू किया गया था। वर्तमान में, मौसम परियोजना एएसआई द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है।

एएसआई ने कहा कि संस्कृति और संसदीय मामलों के राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल, संस्कृति और विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी, केंद्रीय संस्कृति सचिव गोविंद मोहन और हिंद महासागर क्षेत्र के कई देशों के राजदूतों ने सम्मेलन में भाग लिया। मीनाक्षी लेखी ने अपने संबोधन में अन्य देशों के साथ भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के कई पहलुओं पर “निष्पक्ष शोध” की आवश्यकता पर जोर दिया।

इस अवसर पर भारत की समुद्री विरासत की संक्षिप्त रूपरेखा और भारत की विश्व धरोहर संपत्तियों की एक सूची के साथ मौसम परियोजना के उद्देश्यों और दायरे पर एक विवरणिका (ब्रोशर) जारी किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन मौसम परियोजना से संबंधित मुद्दों पर राजदूतों के साथ चर्चा की गई। जिसमें विशेष रूप से वस्त्र, मसाले और मसालेदार व्यंजन, वास्तुकला और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के अन्य पहलुओं से संबंधित अंतर-देशीय संबंधों पर चर्चा की गई।

बयान में कहा गया है कि भारत के विभिन्न हिस्सों के 20 से अधिक विद्वानों ने शैक्षणिक सत्र में भाग लिया, जिनमें मौसम विज्ञानी, पुरातत्वविद, इतिहासकार और जलवायु परिवर्तन, पानी के भीतर की खोज और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध विशेषज्ञ शामिल थे।





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